श्री श्याम वैकुंठ धाम
यह भारत देश बड़ा ही विचित्र है। कहीं घने जंगलों में सिंह की गर्जना, मस्त हाथियों का चि़घाडना, पक्षियों का चहचहाना, कहीं कलकल बहती हुई नदियां,बहते हुए झरने और समुद्र में उठती हुई ऊंची-ऊंची लहरे। प्रकृति के इस अनूठे रूप में ईश्वर का साक्षात रूप विराजमान है। स्वयं ईश्वर को भी जब इस धरती पर अपने भक्तों के कष्ट निवारण के लिए आना पड़ा तो उसने भी पृथ्वी के प्राणियों एवं जीव जंतुओं को अपना सहायक बनाया। जहां गणेश जी ने चूहे को,वही दुर्गा ने शेर को,जहां लक्ष्मी ने उल्लू को,वहीं सरस्वती ने हंस को वाहन के रूप में प्रयोग किया है। गीता में भगवान् ने कहा है जब-जब धर्म की हानि होती है तब तब मेरी कोई शक्ति इस धरा धाम पर जन्म लेकर भक्तों का दुख दूर करती है। इसी तथ्य का प्रमाण है युगपुरुष श्री श्री 1008 पंडित रामगोपाल जी महाराज।
आपका जन्म अलवर राजस्थान जिले के ग्राम भूगोर में 1967 पौष शुक्ला द्वितीय, दिनांक अट्ठारह दिसंबर 1910 में हुआ। ज्योतिषाचार्यों का यह दावा है कि इस शुभ लग्न में बहुत ही कम मानव शरीर की उत्पत्ति हुई है। जिन महानुभावों का इस लग्न में जन्म हुआ है वह सभी महा सिद्ध परोपकारी, कल्याणकारी एवं त्याग मूर्ति के रूप में उभर कर आए हैं। इन्हीं महापुरुषों में एक है श्री राम गोपाल जी महाराज, जिन्होंने अपना सर्वस्व जीवन मनुष्य जाति के उपचार एवं कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। आपने, अपने पिता पंडित पांचू राम जी पटेल के सानिध्य में रहकर कठोर तपस्या की।


श्री महाराज के बड़े भ्राता, श्री भगवान् जिन्होंने शरीर त्याग कर, मेहंदीपुर बालाजी में प्रेतराज सरकार का पद्मासन ग्रहण किया, उस विभूति के दर्शन की अनुभूति सर्वप्रथम जी महाराज की पत्नी माता रामदेई, जिन्हें भक्त लोग बड़ी अम्मा के नाम से पुकारते हैं, को हुई। भक्त भी उतना ही प्रेम-श्रद्धा बड़ी अम्मा में रखते थे जितना कि श्री महाराज में। अनेक भक्तों ने तो अम्मा का गुणगान अपनी स्तुति कीर्तन में भी इस प्रकार किया है।
इस बाबा के दरबार में, अम्मा चाहे सो होय।।
