श्री श्याम गुरु जी महाराज


२ फरवरी, सन् १९५२ को एक सुंदर, सुशील एवं गंभीर स्त्री श्रीमती ओमवती ने एक होनहार पुत्र को जन्म दिया। पिता श्री रघुवीर शरण हनुमान जी के पूर्ण भक्त थे। निश्चय ही माता-पिता का प्रभाव इस बालक पर जन्म से ही पड़ने लगा। सुंदर एवं तीखे नाक नक्श वाला ये बालक अपने अद्भुत नटखट से भगवान् श्री कृष्ण के बाल्यकाल की हर पल याद दिला रहा था। कुछ समय पश्चात् जब माता-पिता को इस बालक में श्री कृष्ण के रूप की झलक दिखाई देने लगी, उन्होंने इस बालक को श्यामसुंदर के नाम से सुशोभित किया।
पाँच वर्ष की अल्प आयु से ही इस बालक में ईश्वर के प्रति अटूट भक्ति की भावना जागृत होने लगी और छोटी-सी आयु में ही वह बच्चा ॠषियों, मुनियों, और महात्माओ के इतिहास की चर्चा करने लगा। चर्चा करते समय ऐसा आभास होता था कि बालक ने या तो पुस्तकों का गहन अध्ययन किया है या फिर मुख में साक्षात् सरस्वती विराजमान है।

समय के साथ-साथ बालक में सभी देवी-देवताओं, विशेष कर श्री हनुमानजी, दुर्गा जी, श्री कृष्ण जी एवं गुरु गोरखनाथ के प्रति भक्ति की भावना प्रबल होती गई।
एक बार दुर्गा देवी के नवरात्रों का समय समीप था। बालक ने नौ दिन तक देवी के कठोर व्रतों का पालन करने का दृढ संकल्प किया। लगभग दस वर्ष की आयु में इन्हीं नवरात्रों में प्रथम जन कल्याणी दरबार का कार्यक्रम अपने कर कमलों द्वारा आरम्भ किया।